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Showing posts from October, 2018
Principles of the Right to Education Act (RTE) - 2009 भारत देश में 6 से 14 वर्ष के हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा आधिकार अधिनियम 2009 बनाया गया है। यह पूरे देश में अप्रैल 2010 से लागू किया गया है। इस कानून को लागू करने के लिए गुजरात राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा फरवरी 2012 से नियम तैयार किये गये हैं। यह कानून हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अवसर और अधिकार देता है, इसके मुख्य पहलू इस प्रकार है- 1. प्रत्येक बच्चे को उसके निवास क्षेत्र के एक किलोमीटर के भीतर प्राथमिक स्कूल और तीन किलोमीटर के अन्दर-अन्दर माध्यमिक स्कूल उपलब्ध होना चाहिए। निर्धारित दूरी पर स्कूल नहीं हो तो उसके स्कूल आने के लिए छात्रावास या वाहन की व्यवस्था की जानी चाहिए। 2. बच्चे को स्कूल में दाखिला देते समय स्कूल या व्यक्ति किसी भी प्रकार का कोई अनुदान नहीं मांगेगा, इसके साथ ही, बच्चे या उसके माता-पिता या अभिभावक को साक्षात्कार देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। अनुदान की राशि मांगने या साक्षात्कार लेने के लिए भारी दंड का प्रावधान है। 3. विकलांग बच्चे भी मुख...
निष्पादन कलाएँ निष्पादन कलाएँ (performing arts) वे कलाएँ हैं जिनमें कलाकर अपनी ही शरीर, मुखमंडल, भाव-भंगिमा आदि का प्रयोग कर कला का प्रदर्शन करते है।दृश्य कला में निश्पादन कला के विपरीत कलाकार अपनी कला का उपयोग कर भौतिक वस्तुऍँ बनाते है, जैसे कि एक चित्र या शिल्प।निश्पादन कला के अन्तर्गत कई कलाऍँ मौजूद है, इन सब में साम्यता यह है कि इन्हें प्रत्यक्ष रूप से दर्शकों के सामने प्रदर्शित किया जा सकता है। निष्पादन कला के विभिन्न प्रकार निष्पादन कला के अन्तर्गत मूल रूप से नृत्य, संगीत, रंगमंच, और संबन्धित कलायें आती है। और जादू, मैम, कठपुतली, सर्कस, गान, और भाषण देना आदि इस कला के दूसरे रूप है। निष्पादन कला का प्रदर्शन करने वालों को कलाकार कहते है। यह कलाकार नायक, विदूशक, नर्तक, जादूगर, संगीतकार, गायक, आदि है। निष्पादन कला के कलाकार वह भी है जो इस कला को परदे के पीछे से सहारा देते है, जैसे कि लिरिसिस्ट, और रंगमंच् सूत्रधार। कलाकार अपने आवरण से पहचान पाते है और इसमे सिमट जाते है। कलाकार अपने पहनावे, रंगमंच के आवरण, रोशनी, शब्द आदि से आदत पड जाते है। रंगमंच We Can be Heroes रंगमंच निश्पा...
*👉बाल मजदूरी अधिनियम* बचपन हमारे जीवन का सबसे सुनहरा समय होता है, जब न किसी बात की चिंता होती है न कोई परेशानी । लेकिन कई बच्चों को छोटी – सी नादान उम्र में ही काम करने के लिए धकेल दिया जाता है । मकान बनाने की काम पर, गलीचे बुनने वाले करघे पर या चाय की दूकान में जूठे बर्तन मांजते हुए बच्चों का दिखाई देना आम बात है । लालची ठेकेदार और दूकानों के मालिक सस्ते में काम करवाने के लिए बच्चों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने से चूकते नहीं हैं । माता पिता कहते हैं “यह हमारी मजबूरी है” पर क्या आप जानते हैं कि बच्चों से काम करवाना कानूनन अपराध है ? बच्चों से काम करवाने वालों को सजा हो सकती है । बच्चों का शरीर कमजोर और बढ़ता हूआ होता है । उनसे ज्यादा शारीरिक काम लेने से उनका रूक जाता है काम की जगह पर उन्हें खरतनाक मशीनों व रसायनों से काम करवाया जाता है । बच्चा आगे चलकर या तो हेमशा बीमार रहेगा या इनता कमजोर की सामान्य जीवन ही जी पायेगा । वह अपनी रोजी भी नहीं कमा सकेगा । साथ ही वह अपनी सामान्य उम्र से कम जियेगा । यह कारण है की बच्चों से उस उम्र में काम लेने वालों को ऐसा करने से रोकना चाहिए *....✍राजू ...
*👉बच्चे देश के भविष्य* बच्चे किसी देश या समाज की महत्वपूर्ण सम्पति होते हैं, जिनकी समुचित सुरक्षा, पालन-पोषण, शिक्षा एवं विकास का दायित्व भी राष्ट्र और समुदाय का होता हैं क्योंकि कालान्तर में यही बच्चे देश के निर्माण और राष्ट्र के उत्थान के आधार स्तम्भ बनते हैं । बाल कल्याण को प्रमुखता देने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस (14 नवंबर) को प्रति वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है । जहाँ एक ओर बाल कल्याण से संबन्धित अनेक विषयों पर विश्व जनमत गंभीरता से सोच रहा है, वहीं दूसरी ओर कई बच्चे आज भी अपने अधिकार से बंचित देखने को मिलते हैं जैसे- *👉ग़रीबी रेखा के नीचे के बच्चे*! *👉नि:शक्त बच्चे* *अशिक्षित परिवार के बच्चे ✍राजू शर्मा*
*👉बच्चों के शैक्षिक तंत्र से बहिष्कार के कारण:-* *👉बाल मजदूरी* बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है। ... *✍राजू शर्मा*
*👉कल दिनांक 20/10/2018 को पी0 सी0 पी0 में चर्चा का मुख्य विषय:-* *👉समावेशित शिक्षा हेतु रणनितियाँ* समावेशित शिक्षा हेतु कुछ रणनीतियाँ इस प्रकार हो सकती है :- *👉1 समावेशित विद्यालय वातावरण :-* बालकों की शिक्षा चाहे वह किसी भी स्तर की हो , उसमें विद्यालय के वातावरण का बहुत योगदान होता है। विद्यालय का वातावरण ही कुछ चीजों की शिक्षा बालकों को स्वंय भी दे देता है । समावेशित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण सुखद और स्वीकार्य होना चाहिए । इसके अतिरिक्ति विद्यालय में विशिष्ट बालकों की विशिष्ट शैक्षिक , चलिष्णुता , दैनिक आदि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक साज-समान शैक्षिक सहायताओं , उपकरणों, संसाधनों , भवन आदि का समुचित प्रबंध आवश्यक है । बिना इनके विद्यालय में समावेशित माहौल बनाने में कठिनाई हो सकती है । *👉2 सबके लिए विद्यालयः-* समावेशित शिक्षा की मूल भावना है एक ऐसा विद्यालय जहाँ सभी बालक एक साथ शिक्षा प्राप्त करते है , परन्तु सामान्यतः इस तरह की बातें देखने और सुनने में आती रहती है कि किसी बालक को उसकी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने में अपनी असमर्थत...
*👉सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक* सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखत हैं – 👉1. उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके – रचनात्मका का विकास करने के लिए खोज के अवसर प्रदान करने चाहिएं और ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिसमें बच्चा आने आपकों स्वतन्त्र समझें। 👉2. बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना ! -अध्यापक विधार्थियों को इस बात के लिए उत्साहित करे कि जितने भी क्षेत्रों में सम्भव हो सके, अपने विचारों तथा भावनओं को प्रकट करे । प्रायः अध्यापक यह समझता है कि रचनात्मकता कविताएं, कहानियां, उपन्यास या जीवनियां लिखने तक ही सीमित है। वास्तव में और भी क्षेत्र हैं जैसा कि कला, चित्रकारी, शिल्प, संगीत या नाटक आदि जिसमें नए ढंग से बच्चों को अपने विचार प्रकट करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है। 👉3. विविधिता की प्रेरणा – अध्यापक को विविध उत्तरों को प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चों के कार्य तथा प्रयत्न में किसी परिवर्तन या विविधता के चिन्ह का स्वागत करना चाहिए और उसे प्रेरणा देनी चाहिए। 👉4. लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना – अध्यापक को चाहिए कि वह सक्रियता तथा लचील...
*👉सृजनात्मकता या सृजन शील का अर्थ :* “ सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओं या विचारों का उत्पादन करता है जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो । जो व्यक्ति इस प्रकार का नवीन कार्य करते हैं उन्हें सृजनशील या सृजनकर्ता कहा जाता है और जिस प्रातिभा के आधार पर वह नई कृति, नवीन रचना या नवीन आविष्कार करते हैं उसे सृजनात्मकता कहा जाता है। विख्यात विद्वानों ने ‘ सृजनात्मकता ‘ की परिभाषाएं प्रस्तुत करके इसके अर्थ को स्पष्ट करने की कोशिश की है – *परिभाषाए :* *👉1. स्टेगनर एवं कावौस्की के अनुसार –*  किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन सृजनात्मकता कहलता है। “ *👉2. ड्रेवगहल के अनुसार*  – सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओँ के विचारों का उत्पादन करता है और जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो। “ *👉3. स्किनर के अनुसार –*  ‘ सृजनात्मक चिन्तन वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है, नए परीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियां करता है और नए निष्कर्ष निकालता है। “ *👉4. क्रो व क्रो* ...
Q. 1) चिंतन कौशल क्या हैं ? बच्चे में चिंतन कौशलों के विकास हेतु परिवार , समाज तथा शिक्षको की भूमिका की चर्चा कीजिए | उत्तर :- चिंतन कौशल वे मानसिक प्रक्रियाएं है जिन्हें हम किसी अनुभव का अर्थ निकालने के लिए प्रयोग करते हैं | यह निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रति सजग तरीके के सोचने के मानव छमता को दर्शाता हैं | इस तरह की प्रक्रियाओं में शामिल हैं | याद रखना , प्रश्न पूछना , आव्धार्नाएँ बनाना , योजना बनाना , तर्क करना , कल्पना करना , समस्या को सुलझाना , निर्णय लेना , फैसले करना , शब्दों को विचारों में बदलना आदि | चिंतन कौशल सोंचने की एक व्यवहारिक क्षमता हैं | जिसे कुछ हद तक प्रभावी या कुशल कहा जाता हैं | ये बुद्धिमान व्यवहार की आदतें हैं जिन्हें अभ्यास द्वारा सीखा जाता हैं | उदाहरण के लिए अभ्यास द्वारा बच्चे कारण बताने में या प्रश्न पूछने में अच्छे हो सकते हैं | कोई शोधकर्ताओं ने मानव चिंतन में महत्वपूर्ण कौशलो को पहचानने का प्रयास किया हैं और इनमे से सबसे प्रसिद्द ब्लूम का वर्गीकरण हैं | ज्ञान , समझ व प्रयोग निम्न स्तर के चिंतन कौशल है जबकि विश्लेषण , संश्लेषण और मूल्यांकन ...
*👉चिन्तन क्या है?* 👉 चिन्तन एक मानसिक प्रक्रिया है और ज्ञानात्मक व्यवहार काजटिल रूप है। यह शिक्षण, स्मरण, कल्पना आदि मानसिक क्षमताओं से जुड़ा रहता है। प्राय: सभी प्राणियों में सोचने समझने एवं चिन्तन करनें की क्षमता होती है परन्तु मनुष्य बुद्धिबल एवं चिन्तनसे अन्य प्राणियों से विकसित प्राणी है। मनुष्य कीप्रगति मुख्यत: उसके चिन्तनपर आधारित है और वह इसके उपयोग से वह अपनी कर्इ प्रकार की समस्याओं को हल करता है। सभी मनुष्यों में सोचने एवं समझने की क्षमता समान नहीं होती। किन्हीं मेंयह क्षमता निम्न स्तर पर होती है तो कर्इ मनुष्यों में यह मध्यम से उच्च स्तरीय होती है। कुछ मनुष्यों में यह क्षमता उच्चतम स्तर तक भी होती है। विचारों के आदान - प्रदान में व्यक्ति चिन्तन का प्रयोग करता है। चिन्तनकोइन क्षमताओं से पूर्णतया अलगनहीं किया जा सकता। कर्इ लोगों के अनुसार चिन्तन प्रक्रिया में हमारा मस्तिष्क सक्रिय रहता है तो कर्इ लोगों का यह मानना है किमस्तिष्क के अतिरिक्त शरीर के अन्य भागों का भी चिन्तनसे संबंध है। अन्य मानसिक प्रक्रियाओं की अपेक्षा चिन्तन अधिक जटिल प्रक्रिया है और यह प्राय: अतीतानुभूतिय...
*👉शारीरिक शिक्षा का अर्थ* शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ तो ‘शरीर की शिक्षा है’ परन्तु इसका भाव शरीर तक सीमित नहीं है । वास्तव में शारीरिक शिक्षा के द्वारा बालक का शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, नैतिक एवं आतिम्क विकास होता है, उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व सुगठित होता है । शारीरिक शिक्षा केवल शारीरिक क्रिया नहीं है । “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा ही है । *👉यह वह शिक्षा है जो शारीरिक क्रियाओं द्वारा बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व, शरीर, मन एवं आत्मा के पूर्ण विकास हेतु दी जाती है ।”* शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में शारीरिक शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है । खेल के मैदान में, धरती माता की धुल में ही बालक के व्यक्तित्व का वास्तविक गठन होता है । खेलों के द्वारा स्फूर्ति, बल, निर्णय शक्ति, संतुलन, साहस, सतकर्ता, आगे बढ़ने की वृति, मिलकर काम करने की आदत, हार जीत में समत्व-भाव, अनुशासनबद्धता आदि शारीरिक, नैतिक, सामाजिक एवं आत्मिक गुणों का विकास होता है । शारीरिक क्रियाकलापोंव्यक्ति खुलकर बाहर आता है । भीतर की कुछ कुंठाएं, घुटन, निराशा आदि खेल की मस्ती में घुल जाती है । उत्साह उमड़ता है । क्रियाशीलता बढ़ती ह...
*👉स्वास्थ्य क्या है अर्थात् किस व्यक्ति को हम स्वस्थ कह सकते हैं?* साधारण रूप से यह माना जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक और मानसिक रोग न होना ही स्वास्थ्य है। यह एक नकारात्मक परिभाषा है और सत्य के निकट भी है, परन्तु पूरी तरह सत्य नहीं। वास्तव में स्वास्थ्य का सीधा सम्बंध क्रियाशीलता से है। जो व्यक्ति शरीर और मन से पूरी तरह क्रियाशील है, उसे ही पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है। कोई रोग हो जाने पर क्रियाशीलता में कमी आती है, इसलिए स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।.... *✍राजू  शर्मा*
*👉कला का महत्त्व* जीवन, ऊर्जा का महासागर है। जब अंतश्चेतना जागृत होती है तो ऊर्जा जीवन को कला के रूप में उभारती है। कला जीवन को सत्यम् शिवम् सुन्दरम् से समन्वित करती है। इसके द्वारा ही बुद्धि आत्मा का सत्य स्वरुप झलकता है। कला उस क्षितिज की भाँति है जिसका कोई छोर नहीं, इतनी विशाल इतनी विस्तृत अनेक विधाओं को अपने में समेटे,,,, *✍राजू शर्मा*
*👉सीधे शब्दों में कहें तो, आम तौर पर मानव द्वारा उसकी खोपड़ी में चल रही* *हजारो प्रकार की कल्पनाओ को अन्य सभी भाई बन्धुवों के सामने दिखने की क्रिया को ही “कला” या “आर्ट” बोलते हैं।...✍राजू शर्मा*
*👉कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक* *विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं।* कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। *👉कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है।* *👉परिभाषा* मैथिली शरण गुप्त के शब्दों में, अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला है -- ( साकेत , पंचम सर्ग) दूसरे शब्दों में -: मन के अंतःकरण की सुन्दर प्रस्तुति ही कला है।... *✍राजू शर्मा*
*👉शिक्षा का अर्थ* *शिक्षा एक ऐसा साधन है जो मानव को प्राणी जगत के अन्य जीवों से पृथक करती है।शिक्षा का मानव जीवन में काफी महत्व है।शिक्षा के बिना मानव पशु के समान है।शिक्षा मानव को एक सामाजिक प्राणी बनाकर सांस्कृतिक धरोहर को आगे आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने के काबिल बनाती है।शिक्षा से ही मानव का सर्वांगीण विकास होता है।मानव अपना व्यक्तित्व जीवन सुखमय बनाता है और सामाजिक जीवन में अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए राष्ट्र के विकास में योगदान देता है।मानव जीवन प्रक्रिया विविध प्रकार के वातावरण में होकर निकलती है।शिक्षा उसको वातावरण के साथ अनुकूलन करने की क्षमता प्रदान करती है तथा साथ ही वातावरण में अपनी सुविधानुसार परिवर्तन करने की शक्ति और ज्ञान प्रदान करती है।शिक्षा समाज की उनत्ति के लिये भी एक महत्वपूर्ण साधन है।... ✍राजू शर्मा*
*👉समाज  का अर्थ* *एक से अधिक लोगों के समुदाय को समाज कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते हैं।जो मानवीय क्रियाकलाप में आचरण,* *सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं।*... *✍राजू शर्मा*
*👉समुदाय का अर्थ* *एक निश्चित भूभाग में निवास करने वाले सामाजिक/आर्थिक/सांस्कृतिक अथवा धार्मिक समूह जो सभी सदस्यो के सहयोग से अपने उद्देश्यो की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं, समुदाय कहलाता है। समुदाय के लोग एक निश्चित स्थान पर निवास करते हैं!.... *✍राजू शर्मा*
                                             समावेशी शिक्षा   ( अंग्रेज़ी :   Inclusive education ) एक शिक्षा प्रणाली है। शिक्षा का  समावेशीकरण  यह बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक दिव्यांग को समान शिक्षा प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक सामान्य छात्र एक दिव्याग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता है। पहले समावेशी शिक्षा की परिकल्पना सिर्फ विशेष छात्रों के लिए की गई थी लेकिन आधुनिक काल में हर शिक्षक को इस सिद्धांत को विस्तृत दृष्टिकोण में अपनी कक्षा में व्यवहार में लाना चाहिए। [1] समावेशी शिक्षा या एकीकरण के सिद्धांत की ऐतिहासक जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ीं हैं। प्राचीन शिक्षा पद्धति की जगह नई शिक्षा नीति का प्रयोग आधुनिक समय में होने लगा है। समावेशी शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करता। अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्...