Principles of the Right to Education Act (RTE) - 2009 भारत देश में 6 से 14 वर्ष के हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा आधिकार अधिनियम 2009 बनाया गया है। यह पूरे देश में अप्रैल 2010 से लागू किया गया है। इस कानून को लागू करने के लिए गुजरात राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा फरवरी 2012 से नियम तैयार किये गये हैं। यह कानून हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अवसर और अधिकार देता है, इसके मुख्य पहलू इस प्रकार है- 1. प्रत्येक बच्चे को उसके निवास क्षेत्र के एक किलोमीटर के भीतर प्राथमिक स्कूल और तीन किलोमीटर के अन्दर-अन्दर माध्यमिक स्कूल उपलब्ध होना चाहिए। निर्धारित दूरी पर स्कूल नहीं हो तो उसके स्कूल आने के लिए छात्रावास या वाहन की व्यवस्था की जानी चाहिए। 2. बच्चे को स्कूल में दाखिला देते समय स्कूल या व्यक्ति किसी भी प्रकार का कोई अनुदान नहीं मांगेगा, इसके साथ ही, बच्चे या उसके माता-पिता या अभिभावक को साक्षात्कार देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। अनुदान की राशि मांगने या साक्षात्कार लेने के लिए भारी दंड का प्रावधान है। 3. विकलांग बच्चे भी मुख...
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निष्पादन कलाएँ निष्पादन कलाएँ (performing arts) वे कलाएँ हैं जिनमें कलाकर अपनी ही शरीर, मुखमंडल, भाव-भंगिमा आदि का प्रयोग कर कला का प्रदर्शन करते है।दृश्य कला में निश्पादन कला के विपरीत कलाकार अपनी कला का उपयोग कर भौतिक वस्तुऍँ बनाते है, जैसे कि एक चित्र या शिल्प।निश्पादन कला के अन्तर्गत कई कलाऍँ मौजूद है, इन सब में साम्यता यह है कि इन्हें प्रत्यक्ष रूप से दर्शकों के सामने प्रदर्शित किया जा सकता है। निष्पादन कला के विभिन्न प्रकार निष्पादन कला के अन्तर्गत मूल रूप से नृत्य, संगीत, रंगमंच, और संबन्धित कलायें आती है। और जादू, मैम, कठपुतली, सर्कस, गान, और भाषण देना आदि इस कला के दूसरे रूप है। निष्पादन कला का प्रदर्शन करने वालों को कलाकार कहते है। यह कलाकार नायक, विदूशक, नर्तक, जादूगर, संगीतकार, गायक, आदि है। निष्पादन कला के कलाकार वह भी है जो इस कला को परदे के पीछे से सहारा देते है, जैसे कि लिरिसिस्ट, और रंगमंच् सूत्रधार। कलाकार अपने आवरण से पहचान पाते है और इसमे सिमट जाते है। कलाकार अपने पहनावे, रंगमंच के आवरण, रोशनी, शब्द आदि से आदत पड जाते है। रंगमंच We Can be Heroes रंगमंच निश्पा...
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*👉बाल मजदूरी अधिनियम* बचपन हमारे जीवन का सबसे सुनहरा समय होता है, जब न किसी बात की चिंता होती है न कोई परेशानी । लेकिन कई बच्चों को छोटी – सी नादान उम्र में ही काम करने के लिए धकेल दिया जाता है । मकान बनाने की काम पर, गलीचे बुनने वाले करघे पर या चाय की दूकान में जूठे बर्तन मांजते हुए बच्चों का दिखाई देना आम बात है । लालची ठेकेदार और दूकानों के मालिक सस्ते में काम करवाने के लिए बच्चों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने से चूकते नहीं हैं । माता पिता कहते हैं “यह हमारी मजबूरी है” पर क्या आप जानते हैं कि बच्चों से काम करवाना कानूनन अपराध है ? बच्चों से काम करवाने वालों को सजा हो सकती है । बच्चों का शरीर कमजोर और बढ़ता हूआ होता है । उनसे ज्यादा शारीरिक काम लेने से उनका रूक जाता है काम की जगह पर उन्हें खरतनाक मशीनों व रसायनों से काम करवाया जाता है । बच्चा आगे चलकर या तो हेमशा बीमार रहेगा या इनता कमजोर की सामान्य जीवन ही जी पायेगा । वह अपनी रोजी भी नहीं कमा सकेगा । साथ ही वह अपनी सामान्य उम्र से कम जियेगा । यह कारण है की बच्चों से उस उम्र में काम लेने वालों को ऐसा करने से रोकना चाहिए *....✍राजू ...
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*👉बच्चे देश के भविष्य* बच्चे किसी देश या समाज की महत्वपूर्ण सम्पति होते हैं, जिनकी समुचित सुरक्षा, पालन-पोषण, शिक्षा एवं विकास का दायित्व भी राष्ट्र और समुदाय का होता हैं क्योंकि कालान्तर में यही बच्चे देश के निर्माण और राष्ट्र के उत्थान के आधार स्तम्भ बनते हैं । बाल कल्याण को प्रमुखता देने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस (14 नवंबर) को प्रति वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है । जहाँ एक ओर बाल कल्याण से संबन्धित अनेक विषयों पर विश्व जनमत गंभीरता से सोच रहा है, वहीं दूसरी ओर कई बच्चे आज भी अपने अधिकार से बंचित देखने को मिलते हैं जैसे- *👉ग़रीबी रेखा के नीचे के बच्चे*! *👉नि:शक्त बच्चे* *अशिक्षित परिवार के बच्चे ✍राजू शर्मा*
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*👉बच्चों के शैक्षिक तंत्र से बहिष्कार के कारण:-* *👉बाल मजदूरी* बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है। ... *✍राजू शर्मा*
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*👉कल दिनांक 20/10/2018 को पी0 सी0 पी0 में चर्चा का मुख्य विषय:-* *👉समावेशित शिक्षा हेतु रणनितियाँ* समावेशित शिक्षा हेतु कुछ रणनीतियाँ इस प्रकार हो सकती है :- *👉1 समावेशित विद्यालय वातावरण :-* बालकों की शिक्षा चाहे वह किसी भी स्तर की हो , उसमें विद्यालय के वातावरण का बहुत योगदान होता है। विद्यालय का वातावरण ही कुछ चीजों की शिक्षा बालकों को स्वंय भी दे देता है । समावेशित शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण सुखद और स्वीकार्य होना चाहिए । इसके अतिरिक्ति विद्यालय में विशिष्ट बालकों की विशिष्ट शैक्षिक , चलिष्णुता , दैनिक आदि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक साज-समान शैक्षिक सहायताओं , उपकरणों, संसाधनों , भवन आदि का समुचित प्रबंध आवश्यक है । बिना इनके विद्यालय में समावेशित माहौल बनाने में कठिनाई हो सकती है । *👉2 सबके लिए विद्यालयः-* समावेशित शिक्षा की मूल भावना है एक ऐसा विद्यालय जहाँ सभी बालक एक साथ शिक्षा प्राप्त करते है , परन्तु सामान्यतः इस तरह की बातें देखने और सुनने में आती रहती है कि किसी बालक को उसकी विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने में अपनी असमर्थत...
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*👉सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक* सृजनात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखत हैं – 👉1. उत्साहपूर्ण वातावरण पैदा करके – रचनात्मका का विकास करने के लिए खोज के अवसर प्रदान करने चाहिएं और ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिसमें बच्चा आने आपकों स्वतन्त्र समझें। 👉2. बहुत से क्षेत्रों में रचनात्मकता को उत्साहित करना ! -अध्यापक विधार्थियों को इस बात के लिए उत्साहित करे कि जितने भी क्षेत्रों में सम्भव हो सके, अपने विचारों तथा भावनओं को प्रकट करे । प्रायः अध्यापक यह समझता है कि रचनात्मकता कविताएं, कहानियां, उपन्यास या जीवनियां लिखने तक ही सीमित है। वास्तव में और भी क्षेत्र हैं जैसा कि कला, चित्रकारी, शिल्प, संगीत या नाटक आदि जिसमें नए ढंग से बच्चों को अपने विचार प्रकट करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है। 👉3. विविधिता की प्रेरणा – अध्यापक को विविध उत्तरों को प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चों के कार्य तथा प्रयत्न में किसी परिवर्तन या विविधता के चिन्ह का स्वागत करना चाहिए और उसे प्रेरणा देनी चाहिए। 👉4. लचीलता तथा सक्रियता को उत्साहित करना – अध्यापक को चाहिए कि वह सक्रियता तथा लचील...